मित्रो !
कितनी विडम्बना है कि पैर में काँटा लगने के भय से हम रास्ते में पड़े काँटे को बचाकर निकल जाते हैं, दुर्गन्ध भरे स्थान पर हम नाक बन्द कर अथवा सांस रोककर निकल जाते हैं किन्तु हमारे बीच अनेक लोग अपने को व्यभिचार, दुराचार, आदि जैसे बड़े खतरों का आसानी से शिकार होने देते है और अपना भावी जीवन नर्क बना लेते हैं। यह अज्ञान नहीं तो और क्या है?
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