मित्रो !
एक मकान के सम्बन्ध में मकान का स्वामी किन-किन अधिकारों का प्रयोग कर सकता है -वह इसमें रह सकता है, आधिपत्य और नियंत्रण रख सकता है, इसको बेच सकता है, खाली रख सकता है, किसी को गिफ्ट में दे सकता है, गिरबी रख सकता है, ध्वस्त (Demolish) स्वयं कर सकता है या करबा सकता है, आदि-आदि। मान लीजिये मैं एक मकान अपने रहने के लिए किराये पर लेता हूँ। ऐसी स्थिति में मकान के सम्बद्ध में मुझे उसमें रहने मात्र का केवल एक अधिकार ही प्राप्त है, मैं मकान के सम्बन्ध में अन्य अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकता। यदि हम मकान में निहित सभी संभव अधिकारों के परिपेक्ष्य में अपने और मकान के मालिक के मकान से सम्बन्ध पर विचार करें तब हम पाते हैं कि मकान के सम्बन्ध में मकान मालिक को सभी अधिकार प्राप्त हैं, वह मकान में निहित सभी अधिकारों का स्वामी है। इसके विपरीत मकान के सम्बन्ध में मुझे सभी अधिकार प्राप्त नहीं हैं, केवल उसमें रहने का एक अधिकार ही प्राप्त है और मैं किरायेदार हूँ। मकान मालिक के लिए मकान उसकी संपत्ति है जब कि मेरे लिए मकान केवल एक मकान है जिसे मैंने रहने के लिए किराये पर लिया हुआ है।
किसी वस्तु के किसी मनुष्य की संपत्ति होने के लिए ऐसे मनुष्य को ऐसी वस्तु में निहित सभी अधिकार, जिनमें वस्तु को नष्ट करने का अधिकार भी शामिल होता है, प्राप्त होने चाहिये। इस दृष्टिकोण से कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति नहीं है।
इस दृस्टि से पति, पत्नी, सास, ससुर, दादा, दादी, बेटे, बेटी, भाई, बहिन, माँ, बाप, आदि जो अपने कहे जाते हैं को भी शारीरिक यातना देने का किसी को अधिकार प्राप्त नहीं है। यह सामाजिक रिश्ते हैं, कोई किसी की संपत्ति नहीं है। कानून द्वारा निर्धारित दायित्वों के निर्वहन या प्रदत्त अधिकारों के सिबाय अन्य किसी को भी किसी को शारीरिक यातना देने का अधिकार नहीं है।
कामर्शियल टैक्स विभाग के मित्र इस पर विचार कर सकते हैं कि वैट अधिनियम या केंद्रीय बिक्रीकर अधिनियम में नकद, आस्थगित भुगतान या अन्य किसी मूलयवान प्रतिफल के लिए एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को किसी माल में संपत्ति के अन्तरण को सामान्य रूप से "बिक्री" परिभाषित किया गया है (डीम्ड सेल को छोड़कर) । यहां "संपत्ति" से अभिप्राय माल में निहित सभी अधिकारों (जो भी संभव हो सकते हैं) से ही है।