Peace, Co-existence, Universal Approach Towards Religion, Life, GOD, Prayer, Truth, Practical Life, etc.
Saturday, December 31, 2016
एक चिंतन / विश्लेषण : नव वर्ष पूर्व संध्या
नव वर्ष पूर्व
संध्या पर क्या खोयें, क्या पायें
मित्रो !
समय सदैव गतिमान रहता है और हमें ऐसा अवसर कभी नहीं देता कि हम अपने जीवन के बीते हुए समय में की गयी भूलों का, उन पलों जिनमें ऐसी भूलें की गयीं थी में जाकर, सुधार कर सकें। जीवन के किसी गुजरे पल में की गयी किसी त्रुटि को कभी भी गुजरे हुए पल में जाकर ठीक किया जाना संभव नहीं है, केवल भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति का रोका जाना ही संभव है। यह तभी संभव हो सकता है जब हम अपने द्वारा कृत कार्यों और व्यवहृत आचरण का समय-समय पर अनुश्रवण करते रहे और अपने क्रिया-कलापों के उचित या अनुचित होने का विश्लेषण करते रहे।
वैसे तो मेंरा विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने द्वारा प्रतिदिन किये गए आचरण और कार्यों की समीक्षा के लिए 5 मिनट का समय आरक्षित कर देना चाहिए। इस समय में उसे दिन भर के क्रिया-कलापों की समीक्षा करके गलत और सही का निर्धारण करते रहना चाहिए। यह समय रात्रि में सोने से पहले का 5 मिनट का समय हो सकता है। किन्तु किन्हीं कारणों से यदि हम ऐसा नहीं करते तब हमें यह कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित एक वर्ष के प्रत्येक अंतराल की समाप्ति पर अवश्य कर लेना चाहिए। इस दिन हमें गुजरे वर्ष में किये गए कार्यों और व्यवहृत किये गए आचरण की समीक्षा कर पता लगाना चाहिए कि जीवन में हम सही रास्ते पर जा रहे हैं अथवा नहीं? हमें जीवन में सही रास्ते पर बने रहने के लिए क्या अपनाना है और क्या छोड़ना है? जीवन के ऐसे कौन से ऐसे पहलू हैं जो अपेक्षित होते हुए भी उपेक्षित रहे हैं। यदि जीवन में तनाव है तब किन कारणों से। यदि जीवन में खुशी का अभाव है तब इसके पीछे क्या कारण रहे हैं ... ।
आज जबकि वर्ष 2016समाप्त होने जा रहा है, मेरा आपसे अनुरोध है कि आप New Year's Eve पर इस सम्बन्ध में विचार करने के साथ-साथ निम्नलिखित विन्दुओं पर भी विचार अवश्य करें :
1. क्या आपके अपने बड़ों के प्रति आपके क्रिया-कलाप ऐसे रहे हैं
जो उनका आशीर्वाद पाने के लिए उचित एवं पर्याप्त कहे जा सकें?
2. क्या आप उनको, जो आप से प्यार और सरंक्षण की अपेक्षा करते हैं, को उचित सरंक्षण और प्यार दे पाने
में सफल रहे हैं?
3. क्या आप अपने परिवारीय सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करने, उन्हें प्यार, सरंक्षण और खुशी देने में सफल रहे
हैं?
4. क्या आपने उनके, जो आप पर निर्भर हैं, भविष्य को सुरक्षित करने के कोई प्रयास किये हैं?
5. क्या आप अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति ईमानदार और
निष्ठावान रहे हैं?
6. आप क्रोध और ईर्ष्या पर किस सीमा तक नियंत्रण पाने में सफल
रहे हैं?
7. समाज में आपकी छवि कैसी रही है?
8. क्या आपके निर्णय निष्पक्ष रहे हैं?
9. क्या आपके कृत्य आपको यथोचित सम्मान और प्यार दिलाने के लिए
पर्याप्त रहे हैं?
10. क्या आपने किसी अवसर पर किसी असहाय या जरूरत मंद की सहायता की
है?
11. वे कौन से क्रिया-कलाप हैं जो आपको नहीं करना चाहिये था?
12. क्या आपने कोई ऐसे कृत्य भी किये हैं जो सृजनात्मक नहीं थे?
13. आप अपने अबांछित विचारों पर नियंत्रण रख पाने में कहाँ तक सफल
रहे हैं?
14. क्या आप अपनी गलतियों पर शर्मिंदा हुये हैं?
15. क्या आप दूसरों की ऐसी गलतियों के लिए जिनके लिए आप उन्हें
क्षमा कर सकते थे किन्तु फिर भी आप उनको क्षमा करने में विफल रहे हैं?
16. क्या आपने समय का सदुपयोग किया है?
17. क्या आप अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे हैं? आपकी जीवन शैली स्वास्थ्य पर प्रतिकूल
प्रभाव तो नहीं डाल रही है?
18. क्या आपके बच्चे आपके सरंक्षण में उचित मार्ग पर प्रसस्त हो
रहे हैं?
19. ऐसे कौन से अनुपयोगी क्रिया-कलाप रहे हैं जिनसे आप छुटकारा
पाना चाहेंगे?
20. ऐसे कौन से नए क्रिया-कलाप हो सकते हैं जो आपके लिए उपयोगी हो
सकते हैं?
मेरा विश्वास है कि मेरे मित्र इस दिशा में अपना योगदान देकर मुझे कृतार्थ करेंगे।
सुस्वागतम 2017 : WELCOME 2017
नव वर्ष 2017 के आगमन पर मैं सभी जनों, मित्रों और शुभचिंतकों का यथायोग्य अभिवादन और अभिनन्दन करता हूँ। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह सभी को नव वर्ष में अच्छे स्वास्थ्य,सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद दे तथा आप सभी आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान, सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ कर वांछित सफलतायें प्राप्त करें।
आइये 2016 को अलविदा कहें
मित्रो !
आइये 2016 को अलविदा कहें
आइये 2016 को अलविदा कहें
वर्ष 2016 की विदाई बेला पर मैं सभी स्वजनों और अन्य सभी जनों के प्रति यथायोग्य सम्मान व्यक्त करते हुए उनका अभिवादन करता हूँ, उनसे मुझे अब तक जो प्यार, स्नेह या सम्मान मिला उसके लिए मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ तथा मुझसे उनके प्रति अब तक जाने - अनजाने में हुयी गुस्ताखियों और त्रुटियों के लिए मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ।
Thursday, December 29, 2016
अहंकार तो आप में भी है
मित्रो !
प्रत्येक जीवित व्यक्ति के पंच-तत्वों से बने शरीर में पांच कर्मेन्द्रियों और पांच ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त मन, बुद्धि और अहंकार भी होते हैं। अहंकार के प्रभाव में ही जीवात्मा शरीर को अपना मानता है तथा शरीर द्वारा किये कर्मों का अपने को कर्त्ता और कृत कर्मों के फलों का अपने को भोक्ता मानता है। शरीर में इसी अहंकार से ग्रसित जीवात्मा ही व्यक्ति का "मैं" (I) होता है।
Wednesday, December 28, 2016
क्रोधित व्यक्ति अंधा कैसे? How a Person in Anger Becomes Blind
मित्रो !
हमारे सामने रखी किसी वस्तु पर जब तक हमारा ध्यान (mind) केंद्रित नहीं होता तब तक वस्तु का प्रतिबिम्ब हमारी आँखों में बनने के बाबजूद भी हम वस्तु को नहीं देख पाते। क्रोध में ग्रसित व्यक्ति की बुद्धि क्रोध के कारणों पर केंद्रित होती है। ऐसी स्थिति में होने पर व्यक्ति न तो अन्य वस्तु देखता है और न ही अन्य विषय पर सोचता है। उसका ध्यान अपने हित और अहित पर भी नहीं जाता। इसी कारण कहते हैं कि क्रोध में व्यक्ति अँधा हो जाता है और उसकी आँखों पर पट्टी पडी होती है।
क्रोधित व्यक्ति को क्रोध से छुटकारा दिलाने के लिए उपाय भी यही होता है कि जिस वस्तु या कारण को लेकर कोई व्यक्ति क्रोधित है उससे उस व्यक्ति का ध्यान हटाकर किसी अन्य विषय या वस्तु पर केंद्रित कर दिया जाय।
Saturday, December 24, 2016
धर्म धारण करने से : ईश्वर पूजा करवाने को अवतार नहीं लेता
मित्रो !
श्रीमद भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा ईश्वर
के समय-समय पर अवतरित होने के कारण अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना करना बताये गए हैं। गीता और
रामायण धार्मिक ग्रन्थ हैं, उनमें क्या करने योग्य है और क्या करने योग्य नहीं है का वर्णन
है। उनका संरक्षण और प्रचार-प्रसार आवश्यक है। उनका संरक्षण और उचित सम्मान हमारा कर्तव्य
हैं। किन्तु धर्म का अर्थ धारण करने से होता
है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि धार्मिक ग्रंथों की उपयोगिता केवल उनकी पूजा करने में
है अथवा उनमें कही गयी बातों पर आचरण करने में है।
मेरा विचार है कि धर्म ग्रन्थ केवल संरक्षण और पूजा के लिए ही नहीं हैं,
हमें उनमें कही गयी
बातों / दिए गए सिद्धांतो को अपने व्यावहारिक जीवन में अपनाना चाहिए। हमें यह नहीं
भूलना चाहिए कि शाश्वत मूल्य सदैव अपरिवर्तित रहते हैं। अन्य मामलों में धर्म ग्रंथों में कही गयी बातों
को आधुनिक जीवन की परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में देखना और समझना चाहिए।
यह मेरी समझ से पर है कि ईश्वर के द्वारा बताये गए सिद्धांतों के विपरीत आचरण करके
कोई ईश्वर को कैसे प्रसन्न कर सकता है। क्या
ऐसा करना ईश्वर से बगावत करना नहीं होगा?
यह सब हमें यह सोचने पर विवश करता है कि -
जो व्यक्ति ईश्वर
द्वारा स्वयं अवतरित होकर प्रस्तुत किये गए आदर्शों, जिनका वर्णन धर्म ग्रंथों में है,
पर न चलकर उनके विपरीत
आचरण करता हो उसका ईश्वर और धर्म को मानने और ईश्वर की पूजा करने का दावा सही नहीं
ठहराया जा सकता। ईश्वर के अवतरण का उद्देश्य
मनुष्य से अपनी पूजा करवाने का नहीं होता।
Tuesday, December 20, 2016
वे स्वर्ग को भी नर्क बना लेंगे
मित्रो !
शायद लोग यह भूल गए हैं कि जिनको दया और प्रेम से घृणा है, जिनको हिंसा, अमानवीय व्यवहार, मार-काट, लूट-खसोट और निरीह लोंगों पर जुल्म ढाना प्रिय है, अगर उनको स्वर्ग मिल भी जाय तब वे स्वर्ग को भी नर्क बना लेंगे।
दुःख इस बात का है कि स्वर्ग की चाहत रखने वाले ऐसे लोंगों की कमी नहीं है। सोचने की बात है कि ऐसे लोंगों को ईश्वर स्वर्ग क्यों देगा।
Friday, December 16, 2016
Tuesday, December 13, 2016
Monday, December 12, 2016
गुमराह होता आदमी
मित्रो !
मनुष्य अपने को ईश्वर के रंग में रंगने के बजाय ईश्वर को ही अपने अनेक रंगों में रंगने में व्यस्त है। ऐसा करके वह अपनी सीमित सोच से असीमित की रचना का असफल प्रयास कर रहा है।
रचना से रचयिता सभी मायनो में बड़ा होता है। ईश्वर इस जगत में समस्त जड़ और चेतन, जिनमें मनुष्य भी शामिल है, का रचयिता है। इसलिए जगत के समस्त जड़ और चेतन से ईश्वर बड़ा है। अतः किसी भी जड़ या चेतन में ईश्वर की रचना कर पाने की योग्यता और क्षमता नहीं है।
Friday, December 9, 2016
Tuesday, December 6, 2016
Tuesday, November 29, 2016
देव भी हम, दानव भी हम We are divine, We are demon
- देव भी हम, दानव भी हममित्रो !महाभारत युद्ध भूमि में प्रारंभ में जो अर्जुन हिम्मत हार कर युद्ध न करने की बात करता है वही अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से ज्ञान पाकर महाभारत का श्रेष्ठ योद्धा बनकर युद्ध करता है। श्रीमद भगवद गीता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अंदर सतो, रजो और तमो, तीन गुणों वाली उसकी अपनी प्रकृति होती है। इन गुणों के लक्षण सात्विकी, राजसी और तामसी होते हैं। सात्विकी लक्षण साधु प्रवृत्ति, राजसी लक्षण क्षत्रियोचित और तामसी लक्षण राक्षसी प्रवृत्ति के जनक होते हैं। प्रकृति के इन तीन गुणों में साम्यावस्था नहीं होती। व्यक्ति की प्रकृति में जिस समय जिस गुण की प्रधानता होती है, मनुष्य उस गुण के प्रभाव में उसी गुण से सम्बद्ध आचरण करता है। इसी कारण किसी समय क्रूरता पूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति किसी अन्य समय पर दयालुता का आचरण करता दिखाई देता है।जब तक मनुष्य की प्रकृति के गुणों की शक्ति (strength) में परिवर्तन नहीं होता वह तीनो गुणों में प्रधान गुण के प्रभाव में उसी गुण के अनुरूप एक समान आचरण उस समय तक करता रहता है जब तक उसकी प्रकृति में गुणों की शक्तियों (strengths) में परिवर्तन होने से किसी अन्य गुण की प्रधानता नहीं हो जाती। मनुष्य अपने आचरण, ज्ञान, रहन-सहन और खान-पान में परिवर्तन से अपनी प्रकृति के तीन गुणों के शक्तियों में परिवर्तन कर सकता है। मनुष्य की प्रकृति के तामसी और राजसी गुणों पर विजय ही दैवत्व प्राप्ति की यात्रा (Journey to Divinity) है।प्रत्येक व्यक्ति सतो, रजो और तमो तीन गुणों वाली उसकी अपनी प्रकृति से प्रभावित हुआ सात्विकी, राजसी और तामसी प्रकृति का आचरण करता है। प्रकृति के इन तीन गुणों में परिवर्तन किये बिना वह अपना स्वाभाव और आचरण नहीं बदल सकता।
-
Tuesday, November 22, 2016
असहाय के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें
मित्रो!
जब हमारा कोई परिचित या संबंधी गंभीर अवस्था में अस्वस्थ होता है और उपचार का भी उस पर कोई असर नहीं दिखाई देता। उस समय हम यही सोचते हैं कि काश हम कुछ कर सकते। उस समय हमें एक रास्ता दिखाई देता है, हम उसके लिए ईश्वर से दुआ माँगते हैं कि वह स्वस्थ हो जाय। ऐसे ही हमें चाहिए कि जहां हम किसी गरीब या असहाय की अपने तन, मन या धन से सहायता कर पाने में असमर्थ हों वहां पर हमें उस गरीब या असहाय के लिए ईश्वर से दुआ माँगनी चाहिए। इससे हमारा चरित्र निर्मल होता है।
Sunday, November 20, 2016
निराशा, चिंता या तनाव से मुक्ति : Freedom from Despair, Worry or Tension
मित्रो !
निराशा, चिंता या तनाव से ग्रसित होने पर हमारा मष्तिष्क सामान्य स्थिति में कार्य नहीं करता और इस कारण हम कोई कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते। इनसे स्वास्थ्य हानि भी होती है। इनसे जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाय उतना ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं उनको निराशा, तनाव और चिन्ताएं नहीं सतातीं। आस्थावान व्यक्ति निराशा, चिंता या तनाव से ग्रस्त होने पर ईश्वर को याद कर यह सोच कर कि ईश्वर सब ठीक करेगा निश्चिन्त हो जाता है। ऐसा होने पर वह निराशा, चिंता और तनाव से मुक्त हो जाता है।
जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं उनको निराशा, तनाव और चिन्ताएं नहीं सतातीं। आस्थावान व्यक्ति निराशा, चिंता या तनाव से ग्रस्त होने पर ईश्वर को याद कर यह सोच कर कि ईश्वर सब ठीक करेगा निश्चिन्त हो जाता है। ऐसा होने पर वह निराशा, चिंता और तनाव से मुक्त हो जाता है।
Friday, November 18, 2016
Monday, November 14, 2016
निर्णय लेने में देश, काल और परिस्थितियों का महत्व : Importance of Time, Place and Circumstances in Taking a Decision
मित्रो !
देश, कल और परिस्थितयों को देखकर लिया गया निर्णय व्यवहारिक निर्णय होता है। जो निर्णय व्यवहार में न लाया जा सके, उस निर्णय की कोई उपयोगिता नहीं होती।
देश, काल और समस्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय ही उचित निर्णय होता है। इनकी उपेक्षा कर लिया गया कोई निर्णय अनुपयोगी और अनुपयुक्त निर्णय होता है।
Sunday, November 13, 2016
Tuesday, November 8, 2016
खुशी चाहिए तो ख़ुशी पहचानो
- मित्रो !यहॉं पर हम एक साधारण उदहारण लेते हैं। मान लीजिये कि आप अपने घर के बाहर सड़क के किनारे टहल रहे हैं। आपके पास एक अजनबी आकर एक स्थान विशेष का पता पूछता है। इस परिस्थिति में आप निम्नलिखित में से कोई एक कार्यवाही कर सकते हैं:1.आप रूककर विनम्रता पूर्वक उस व्यक्ति को पता बता देते हैं; अथवा2.आप उस व्यक्ति की ओर देखते हैं और उससे बिना कुछ बोले आगे बढ़ जाते हैं; अथवा3.आप उसे विनम्रता पूर्वक बताते हैं कि आपको वह पता ज्ञात नहीं है; अथवा4.आपको पता ज्ञात न होने की स्थिति में आप उसे संमीप के किसी ऐसे व्यक्ति का पता बता देते हैं जो उसे पते की जानकारी दे सकता हो; अथवा5.आप उसे समीप के किसी ऐसे परिचित के पास ले जाते हैं जो पता बता सके।जब आपको ज्ञात किसी स्थान विशेष का पता पूछने वाले किसी व्यक्ति को पता बताये बिना आप उसकी उपेक्षा कर आगे बढ़ जाते हैं, आप भले ही माने कि आपका कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा करके आप बहुत कुछ खो देते हैं।किसी जरूरतमंद की मदद करने से आत्म संतुष्टि और ख़ुशी मिलती है। आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। ईश्वर अनन्य लोगों को छोड़कर तुम्हें अपना प्रिय मानकर तुम्हें दूसरे व्यक्ति को उपकृत करने का अवसर देता है । जाने -अनजाने में तुम से हुए तुम्हारे अपने गुनाहों का बोझ हल्का करने का तुम्हें एक अवसर मिलता है। जब आप पता पूछने वाले से मुंह फेर कर आगे बढ़ जाते हैं तब आप यह सब खो देते हैं।
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Friday, November 4, 2016
काया का रख-रखाव ही लक्ष्य नहीं
मित्रो !
हम जिंदगी भर अपने शरीर को सजाने संबारने में लगे रहते हैं। सत्य यह है कि परमात्मा ने हमें शरीर आवश्यक और शुभ कर्म करने के लिए दिया है। शरीर का क्षय होना निश्चित है और एक दिन शरीर मिटटी में बदल जाना है। बचना है तब शुभ कर्मों की पूँजी।
मेरा यह आशय नहीं है कि शरीर को स्वस्थ न रखा जाय। नीरोग काया पहली आवश्यकता है। काया नीरोग और स्वस्थ न होने पर अपना जीवन निर्वाह भी नहीं हो सकता। किन्तु शरीर का रख-रखाव ही जीवन का उद्देश्य नहीं है। हमें ध्यान रखना चाहिए शरीर लक्ष्य प्राप्त करने के लिए साधन है, लक्ष्य नहीं। हमें शरीर का उचित रख-रखाव करते हुए जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर्म करना चाहिए।
Thursday, November 3, 2016
वह मंदिरों में ही नहीं मंदिरों में भी
मित्रो !
जो यह जानता है कि ईश्वर सब जगह है उसे ईश्वर को याद करने के लिए मंदिर की जरूरत नहीं होती, वह मंदिर के बिना भी ईश्वर को याद कर लेता है। केवल मंदिर ही वह स्थान नहीं है जहां ईश्वर है, अपितु मंदिर उन स्थानों में से एक स्थान है जहां ईश्वर है क्योंकि ईश्वर सर्वविद्यमान (Omnipresent) है। इसीलिये मेरा मानना है कि -
मैं नास्तिक हूँ किन्तु इतना बड़ा नहीं कि राह में आये मन्दिरों में ईश्वर को नकार दूँ, साथ ही इतना बड़ा आस्तिक भी नहीं हूँ कि मंदिरों की खोज में ही घूमा करूँ, क्योंकि मेरा अपना विश्वास है कि भगवान मंदिरों में ही नहीं, मंदिरों में भी है क्योंकि वह सर्वविद्यमान है।
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Monday, October 31, 2016
प्यार का अनमोल उपहार : Valuable Gift of Love
- मित्रो !
God has blessed all of us with valuable gift of love. We should understand love and thereafter -Live in love and inspire others to live with love.प्यार को जियें और औरों को प्यार से जीने के लिए प्रेरित करें। - Promote and propagate love.
Thursday, October 27, 2016
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
मित्रो !
(1) शारीरिक आत्म-नियंत्रण;
(2) मानसिक आत्म-नियंत्रण; और
(3) संसारिक आत्म-नियंत्रण।
मनोविज्ञान के अनुसार इच्छाशक्ति या संकल्प (Will या Volition) वह संज्ञानात्मक प्रक्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को किसी विधि का अनुसरण करते हुए करने का प्रण करता है। संकल्प मानव की एक प्राथमिक मानसिक क्रिया है। इस आधार पर यह मान सकते हैं कि स्वस्थ मष्तिष्क में इच्छाशक्ति का जन्म होता है। स्वस्थ मष्तिष्क तो जन्म जात हो सकता है किन्तु मष्तिष्क में इच्छाशक्ति जन्म-जात नहीं है। जहाँ तक इच्छाशक्ति को अभिप्रेरित और जाग्रत किये जाने के सन्दर्भ में है मेरा मानना है कि प्रारम्भ में इस संकाय को अभिप्रेरित करने की आवश्यकता होती है किन्तु कुछ अभ्यास के उपरान्त यह क्रिया उपयुक्त वातावरण में स्वचलित हो जाती है।
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण आत्म-नियंत्रण और एकाग्रता से ही किया जा सकता है। आत्म-नियंत्रण हमें तीन दिशाओं में करना होता है: (1) शारीरिक आत्म-नियंत्रण;
(2) मानसिक आत्म-नियंत्रण; और
(3) संसारिक आत्म-नियंत्रण।
शारीरिक आत्म-नियंत्रण के अंतर्गत हमें अपने को पूर्णतया स्वस्थ रखना होता है। आपने यह कहावत अवश्य ही सुनी होगी "A sound mind in a sound body". शारीरिक आत्म-नियंत्रण में अपेक्षित होता है कि आप संतुलित आहार लें, हल्का और सुपाच्य भोजन करें। अधिक कड़ुआ, तीखा, चटपटा और अपाच्य भोजन न करें। न अधिक सोएं और न अधिक जागें, उचित व्यवधान रहित पर्याप्त नींद अवश्य लें। यदि प्राणायाम नहीं भी करते हैं तब प्रतिदिन कुछ एक्सरसाइज अवश्य करें। मानसिक आत्म-नियंत्रण में काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि से दूर रहकर सतत विनम्र बने। अहंकार और झूठ से बचें। इन व्यसनों से बचने के लिए जब भी इनसे सम्बंधित इच्छाएं आपके मष्तिष्क में जन्म लें उनसे आप तुरंत मुंह मोड़ लें, उनकी पूरी तरह अनसुनी कर दें। संतोष धारण करें, क्षमा को अपनायें, कम बोलें, मधुर बोलें, वाणी पर नियंत्रण रखें। एकाग्रता (Concentration) का अभ्यास करें। सांसारिक आत्म-नियंत्रण में सांसारिक प्रलोभनों से बचें। दूसरों से वादा सोच-समझकर करें और वादा करने के बाद उसे समय से निभाएं। कभी किसी से छल - प्रपंच न करें। सभी से प्रिय बोलें।
मेरे विचार से इस प्रकार से आत्म-नियंत्रण रखे जाने पर इच्छाशक्ति अवश्य प्रबल होगी और हर क्षेत्र में सफलता हमारे हाथ लगेगी।
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
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Wednesday, October 26, 2016
विडम्बना : The Irony
मित्रो !
कैसी विडम्बना है कि हम उन उपकरणों, जो हमने अपनी अल्पकालिक सुविधा के लिए बनाये हैं, का रख-रखाव और रक्षा तो नियमित रूप से करते हैं किन्तु हम पृथ्वी और प्रकृति, जिन्होंने हमारा जन्म से पोषण किया है और जिनके कारण हम जीवित हैं, के रख-रखाव और रक्षा की हम कोई परवाह नहीं करते।
Earth, Nature, Maintenance, Birth,Irony,
Sunday, October 23, 2016
सकाम कर्म ही पुनर्जन्म का कारण : Cause of Rebirth : Deeds Performed with Desire of Fruits
मित्रो !
सकाम कर्म ऐसे कर्म होते हैं जो फल की इच्छा से किये जाते हैं। ऐसे कर्मों का कर्मों के अनुसार फल अवश्य मिलता है। कर्मों का फल मिलने का भी समय होता है, कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता जाता है, कुछ कर्मों का फल कर्म करने के कुछ समय बाद और कुछ कर्मों का फल काफी समय बाद, यहां तक कि मृत्यु के बाद मिलता है। जिन कर्मों का फल उसी जन्म में नहीं मिल पाता है उसका फल भोगने के लिए आत्मा नया शरीर धारण करता है। जो कर्म फल के लिए नहीं किये जाते हैं निष्काम कर्म कहलाते हैं। ऐसे कर्मों का फल जीवात्मा को नहीं भोगना पड़ता है। अतः ऐसे कर्म पुनर्जन्म का कारण नहीं बनते।
श्रीमद भगवद गीता में भगवन श्री कृष्ण द्वारा मानव शरीर को क्षेत्र (खेत) और इसके ज्ञाता को क्षेत्रज्ञ बताया गया है। कर्म करने और कर्म के फल का भोग / उपभोग करने के लिए शरीर और जीवात्मा का साथ होना आवश्यक है। पच-तत्व "क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा" से बना शरीर तब तक मिटटी है जब तक उसमें जीवात्मा का प्रवेश नहीं होता और जब जीवात्मा इस शरीर को छोड़ देता है तब जो कुछ बचता है वह यही पांच तत्व होते हैं। अतः फलों का भोग भी तभी किया जा सकता है जब जीवात्मा शरीर धारण किये हुए हो।
शरीर के बिना जीवात्मा कर्म और कर्म के फल का भोग नहीं कर सकता। किसी जन्म में किये गए ऐसे कर्मों, जिनके फलों का भोग उसी जन्म में संभव नहीं हो पाता, के फलों का भोग करने के लिए जीवात्मा नया शरीर धारण करता है।
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Friday, October 21, 2016
गरीबी रेखा : Poverty Line
मित्रो !
गरीब वह व्यक्ति होता है जिसे अपनी आय को देखते हुए सामान्य जीवन जीने के लिए भी अपनी न्यूनतम बुनियादी आवश्यकताओं (minimum basic necessities) से समझौता करना पड़ता है। स्थानीय परिस्थितियों और बुनियादी आवश्यकताओं को देखते हुए अलग-अलग स्थानों और देशों में रह रहे व्यक्तियों के लिए ऐसी न्यूनतम आय भिन्न-भिन्न हो सकती है। एक गरीब व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित हो सकतीं हैं किन्तु जिस देश में वह रह रहा है उस देश की सरकार अपने नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं में एक न्यूनतम स्तर तक शिक्षा और चिकित्सा भी अनिवार्य रूप में शामिल कर सकती है। ऐसी स्थिति में अपेक्षित न्यूनतम आय सीमा भी अधिक हो जाती है। मंहगाई बढ़ने से भी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने की लागत बढ़ जाती है। किसी देश की सरकार, जो मंहगाई उन्मूलन का प्रोग्राम चलाती है उसे गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को चिन्हित करने के लिए ऐसे सभी तथ्यों पर विचार करना चाहिए। मेरा मानना है कि -
किसी देश की सरकार अपने देश के नागरिकों के रहन-सहन के जिस न्यूनतम स्तर का पूरा होना आवश्यक मानती है, रहन-सहन के उस स्तर को प्राप्त करने और बनाये रखने के लिए आवश्यक आय से कम आय वाले नागरिकों को उस देश का गरीब नागरिक समझा जाना चाहिए।
Below Poverty Line : गरीबी रेखा के नीचे।
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शिक्षा
Monday, October 17, 2016
उत्साह के बिना उत्सव कैसा : No festival without festivity
मित्रो !
उमंग, उछाह, विनोद, आमोद-प्रमोद, आदि, हमारे त्यौहारों में जान डाल देते हैं। इनके बिना कोई उत्सव या त्यौहार, त्यौहार होने का अहसास ही नहीं होता। त्यौहार के दिन यदि हमारे परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो या घर में कोई अन्य परेशानी हो तब त्यौहार फीका पड़ जाता है। उत्सव ही हमारे त्यौहारों को यादगार बनाते हैं।
उमंग, उछाह, विनोद, आमोद-प्रमोद, आदि, हमारे त्यौहारों में जान डाल देते हैं। इनके बिना कोई उत्सव या त्यौहार, त्यौहार होने का अहसास ही नहीं होता। त्यौहार के दिन यदि हमारे परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो या घर में कोई अन्य परेशानी हो तब त्यौहार फीका पड़ जाता है। उत्सव ही हमारे त्यौहारों को यादगार बनाते हैं।
संयुक्त
राष्ट्र द्वारा समय-समय पर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विश्व दिवस यथा मातृ दिवस, पितृ दिवस, मित्रता दिवस, भ्रातृ दिवस, नशा
मुक्ति दिवस,
योग दिवस, सामाजिक न्याय दिवस, आदि घोषित कर रखे हैं। इतनी अधिक
संख्या में दिवस घोषित किये जा चुके हैं कि इनका याद रख पाना भी आसान नहीं रह गया
है। यदि प्रत्येक दिवस को मनाया जाए तब अगर पूरे वर्ष नहीं तब वर्ष का एक बड़ा भाग
इसी में निकल जायेगा। और यदि न मनाया जाय तब अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने का
कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। ऐसे में विषय विशेष के प्रति जन सामान्य के बीच कोई
जागरूकता (awareness)
लाना संभव नहीं
होगा।
मेरा विचार है कि अब तक जो विश्व दिवस घोषित
किये गए हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रखकर दिनों की संख्या को सीमित किया
जाना चाहिए। उदहारण स्वरुप स्वास्थ्य या बिमारियों से सम्बंधित दिवस हैं उनको एक
श्रेणी में स्वास्थ्य दिवस में रखा जाना चाहिए। ऐसा होने से दिवसों की संख्या
सीमित हो जाएगी और उन्हें उत्साह के साथ मनाया जा सकेगा। इस दिन विश्व स्वास्थ्य
संगठन की ओर से अथवा उनकी पहल पर सरकारों द्वारा उत्सवों, प्रदर्शनियों, शिविरों आदि का आयोजन किया जाना चाहिए।
मात्र विश्व दिवस कलेंडर में तिथि के आगे दिवस का नाम अंकित कर देने में सार्थकता
नहीं है। सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा अनेक मामलों में दिवसों को त्यौहारों के
रूप में मनाया जाता है और इस कारण उनका महत्व समाज में सहस्त्रों वर्ष गुजरने के
बाद भी बना हुआ है।
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विनोद,
विश्व दिवस
Saturday, October 15, 2016
क्या आपने कभी सोचा है? : Have You Ever Thought?
मित्रो !
जब हम मन, बुद्धि
और शरीर से किसी क्रिया को बार-बार करते हैं तब कुछ समय बाद हम उस क्रिया को करने
के अभ्यस्त हो जाते हैं और उसके बाद उस क्रिया को करने के लिए हमें सोचना - विचारना
नहीं पड़ता। विचारणीय यह है कि हम अपने व्यक्तित्व विकास के लिए ऐसा क्यों
नहीं कर सकते ?
व्यक्तित्व के ऐसे कुछ क्षेत्र निम्नप्रकार हो सकते हैं
क्रोध पर नियंत्रण, सहनशीलता, मृदु भाषण, जरूरतमंदों
की सहायता, अहिंसा, दया भाव, आपसी सहयोग, क्षमा, सदभावना, आभार, सत्य भाषण, समयनिष्ठा, ईमानदारी, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, आदि।
(जिस क्रम में क्षेत्र / गुण अंकित किये गए हैं, वे महत्ता प्रदर्शित नहीं करते।)
When we do any act repeatedly applying our mind, intellect and body, we become accustomed of doing it and thereafter, we can perform such act without much thinking. The question is that why we do not apply this aspect for development of our personality?
Few such
aspects / fields of our personality may be as follows:
Control
over anger, Tolerance, Soft speech, Help to needy, Non-violence, Compassion,
Mutual co-operation, Forgiveness, Harmony, Gratitude, Truth, Punctuality, Honesty,
Cleanliness, Environment protection, etc.
Thursday, October 13, 2016
सर्वोच्च एकल ईश्वर : Supreme One God
मित्रो !
ईश्वर का विस्तार ऐसा है जिसका न कोई प्रारम्भ है और न ही जिसका कोई अंत है
अतः उसका वर्णन कर पाना मनुष्य की पहुँच से परे है। मेरा मानना है कि ईश्वर को
मानने वाले लोग मोटे तौर पर ईश्वर के बारे में मानते हैं कि ईश्वर –
1. इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (cosmos) का रचयिता और नियंता है;
2. सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञानी है;
3. सर्वोच्च (Supreme) है, उसके समान या उससे बड़ा कोई दूसरा नहीं है।
यदि ऊपर उल्लिखित गुणों
वाले ईश्वर की कल्पना करें तब ईश्वर के ऊपर किसी अन्य ईश्वर या ईश्वर के समान्तर
किसी दूसरे ईश्वर अथवा ईश्वर के नीचे उसके समतुल्य किसी ईश्वर के होने की कल्पना
नहीं की जा सकती क्योंकि ऐसा होने पर ईश्वर सर्वोच्च नहीं रह जायेगा। ऐसी स्थिति
में महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि भिन्न-धर्मों में भिन्न-भिन्न ईश्वर अथवा एक
ही धर्म में अलग-अलग लोंगों के अलग-अलग ईश्वर क्यों हैं।
एक ऐसी विशालकाय पहाड़ी
की कल्पना करते हैं जो किसी भी मनुष्य द्वारा अगम्य है और जिस पर प्रत्येक स्थान
पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। इसके तलहटी में इसके चारों ओर मनुष्य
खड़े हैं जी पहाड़ी को देख रहे हैं। स्पष्ट है पहाड़ी की ओर देखने वाला कोई भी
व्यक्ति पहाड़ी का सीमित क्षेत्र ही देख पायेगा, भिन्न-भिन्न व्यक्ति पहाड़ी पर
अलग-अलग फूल होने की बात कहेंगे। अगर प्रत्येक व्यक्ति से कहा जाय कि वह पहाड़ी का
चित्र बनाये तब प्रत्येक व्यक्ति उसने जो कुछ देखा है वैसा ही चित्र बनाएगा।
किन्तु किसी भी व्यक्ति द्वारा बनाया गया चित्र पहाड़ी की प्रतिकृति (Replica) नहीं होगी क्योंकि पहाड़ी के बारे में उसका ज्ञान सीमित और अपूर्ण है। यही
स्थिति ईश्वर की प्रतिकृति (Replica) बनाने वालों की है, उनके द्वारा ईश्वर के बनाये गए चित्र या मूर्तियां ईश्वर की प्रतिकृतियां
नहीं है क्योंकि वे संपूर्ण ईश्वर का वर्णन नहीं करतीं। उनमें ईश्वर को देखने वाला
उतना ही ईश्वर देखता है जितना वह ईश्वर के बारे में ज्ञान रखता है।
ईश्वर सर्वत्र व्याप्त
होने के बाद भी अदृश्य है, उसका दर्शन केवल आस्थावान मनुष्यों द्वारा
ज्ञान चक्षुओं (eyes) द्वारा ही किया जा सकता है। सर्वत्र व्याप्त होने
के कारण उसे प्रतिकृति रखने या उसकी प्रतिकृति होने का कोई औचित्य या आवश्यकता
नहीं है, प्रतिकृतोयों की रचना या कल्पना मनुष्य की अपनी की हुयी है। इन
प्रतिकृतियों की रचना मनुष्य द्वारा ईश्वर में उसकी अपनी आस्था और ईश्वर के बारे
में उसके अपने ज्ञान के आधार पर हुयी है। विभिन्न मनुष्यों और समाजों में ईश्वर
में उनकी आस्था और ज्ञान में भिन्नता के कारण प्रतिकृतियों में असमानता और भिन्नता
आ गयी है।
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